Friday 23 December 2011

क्या इस गगन की विशालता
मै अपने में समा पाऊँगी?
    क्या इस सागर की गहराई
    मै अपने में ला पाऊँगी?
क्या इस पवन की गति जैसी
मै भी गतिमान हो पाऊँगी?
    क्या नदी जैसी
    सबको जीवन दे सकूंगी?
क्या पृथ्वी जैसी घाव सहकर भी
शांत रह पाऊँगी?
    क्या इस भास्कर जैसी
    तेजस्वी मै बन सकूंगी?
क्या चन्द्रमा और तारों जैसी
शीतल चांदनी मै बरसा पाऊँगी?
    क्यों नहीं?
क्यों कि मै भी तो
उसी सृष्टिकर्ता का एक अविष्कार 






    















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